वर्तमान में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों की प्रासंगिकता
भारत राष्ट्र के निर्माण को दिशा देने में विभिन्न महान विभूतियों की भूमिका रही है। ऐसे ही एक महान नेता थे स्वर्गीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी। आज उनकी जयंती है। देश के लिए दिए गए उनके योगदान के उपलक्ष्य में उनके जन्मदिवस को “अंत्योदय दिवस” के रूप में मनाया जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक महान विचारक, पत्रकार, समाजशास्त्री,अर्थशास्त्री तथा कुशल संगठनकर्ता थे।
वे भारतीय जन संघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने सनातन की विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद का दर्शन दिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत में गरीबों दलितों की आवाज भी थे। वह देश में बनने वाली हर जन कल्याणकारी योजना को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के समर्थक थे। उनका मानना था कि समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों के हित में योजनाएं बननी चाहिए और इन योजनाओं का सीधा लाभ समाज के अंतिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचना चाहिए।
कोई भी देश तभी उन्नति करता है जब उसके सामाजिक परिवेश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति के समान अवसर प्राप्त हो। सरकार भी ऐसी जनकल्याणकारी योजनाएं बनाएं जिन के केंद्र में समाज का गरीब, दलित, पिछड़ा एवं अंतिम व्यक्ति हो। समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उत्थान ही राष्ट्र के उत्थान में सहायक होगा। यही उनकी अंत्योदय अवधारणा थी। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों की छवि देखने को मिलती है।
आयुष्मान स्वास्थ्य कार्ड हो, कौशल विकास हो या प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण अन्न योजना, ये सभी ऐसे उपक्रम हैं जो गरीब, दलित, पिछड़ों या समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्तियों के समग्र विकास के लिए चलाई जा रही हैं ताकि समाज के हर व्यक्ति को उन्नति व विकास के समान अवसर प्राप्त हो। पिछले सप्ताह विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा “प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना” का शुभारंभ किया गया। इस योजना में समाज के सुनार, लोहार, नाई, चर्मकार, कुम्हार, शिल्पकार, मूर्तिकार, राजमिस्त्री जैसे पारंपरिक कौशल रखने वाले 18 प्रकार के लोगों को अपने पारंपरिक व्यवसाय शुरू करने के लिए मदद मिलेगी। इसमें पूरे भारत के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कामगारों एवं शिल्पकारों को शामिल किया गया है।
यह 13 हजार करोड रुपए की सरकारी योजना समाज में पारंपरिक कौशल रखने वाले लोगों को स्वाबलंबी या आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई है। इसमें कौशल विकास की ट्रेनिंग के साथ-साथ लाभार्थियों को तीन लाख तक का ऋण देने का भी प्रावधान है जो अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद करेगा। हालाँकि सोशल मीडिया पर कुछ लोग इस योजना को लेकर सरकार की आलोचना भी कर रहे हैं कि सरकार लोगों को सरकारी नौकरी का प्रावधान ना करके गरीब को गरीबों वाले काम पर ही लगाए रखना चाहती है।
हम सभी जानते हैं कि समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति समान नहीं हैं। सभी का क्षमता स्तर अलग-अलग होता है। इस योजना में चयनित श्रेणियों के प्रतिभावान बच्चे अपनी प्रतिभा के आधार पर आगे आ सकते हैं परन्तु जो कम क्षमता वाला व्यक्ति है उसे आगे बढ़ने से क्यों रोका जाए। इसलिए अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य या व्यवसाय शुरू कर स्वावलंबी बनने का अवसर सरकार द्वारा मुहैया करवाया जायेगा।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी स्वदेशी के भी बहुत बड़े समर्थक थे। वे पूंजीवाद एवं साम्यवाद जैसे विचारों के विरुद्ध थे। आर्थिक नीति या अर्थशास्त्र के बारे में दीनदयाल जी का मानना था कि लोगों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए उद्योगों की छोटी छोटी इकाइयाँ क्षेत्रीय स्तर पर होनी चाहिए, जिससे उत्पादन ज्यादा हो और लोगों को उनकी योग्यता और कौशल के अनुरूप इसका लाभ मिल सके।
उन्होंने आधुनिक विज्ञान तकनीक का स्वागत किया किन्तु भारत की प्रगति के लिए छोटे उद्योग-धंधों को श्रेष्ठ एवं हितकारी बताया। वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा कुटीर उद्योग, सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्यम, ग्रामीण क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूह आदि को दिया जा रहा प्रोत्साहन, उन्ही के विचारों की झलक है।
उनका मानना था कि भारत के समग्र विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इससे समाज के लोग आत्मनिर्भर तो बनेंगे ही वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अपने घर के आस-पास ही अन्य लोगों को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे।
इससे समाज का हर व्यक्ति आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेगा। सरकार द्वारा चलाई गई मेक इन इंडिया स्टार्टअप योजना का उद्देश्य स्वदेशी को बढ़ावा देना ही है। पंडित दीनदयाल जी ने सनातन संस्कृति को युगानुकूल बनाते हुए एकात्म मानववाद का विचार दिया।
एकात्म भारत का विचार आज भी देश में काफी प्रासंगिक है। उन्होंने कहा था कि भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। यह भारतीय संस्कृति भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है।
इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। जी-20 के सम्मेलन में भारत ने मेजबानी की जिसमें भारतीय सांस्कृतिक की झलक देखने को मिली। भारत ने “वसुदेव कुटुंबकम” को चरितार्थ करते हुए “एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य” का संदेश दिया। इसमें ब्रिटेन तुर्की, अमेरिका, बांग्लादेश, ब्राजील आदि देशों के से आए प्रतिनिधियों ने “एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य” के संदेश की जमकर सराहना की।
सभी ने एक मंच पर एक साथ आने और एकजुट होकर योजनाबद्ध ढंग से वर्तमान समय की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और इनका हल निकालने के प्रयास पर बल दिया। यही एकात्म मानववाद का असली स्वरूप है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, एक कुशल नेता और भविष्य दृष्टा थे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने उपाध्याय जी की कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर एकबार कहा था- यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं। हालांकि, 11 फरवरी 1968 की रात मुगलसराय के करीब का उनका आकस्मिक निधन हो गया था।
उनके सम्मान में भारत सरकार ने मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन कर दिया है। वर्तमान पीढ़ी को उनके विचारों से अवगत करवाना और उनका अनुसरण करना आवश्यक है ताकि वर्तमान पीढ़ी स्वावलंबी बनकर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो। यह विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने का मजबूत आधार बन सकता है।
डॉ. अवनीश कुमार