भारत विभाजन विभीषिका दिवस एवं अखंड भारत संकल्प

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हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर चुके हैं और स्वतंत्रता के इस काल को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं। परन्तु इसका कटु सत्य यह भी है कि पूरी दुनिया को एकता और अखंडता का पाठ पढ़ाने वाले भारत को स्वतंत्रता विभाजन के रूप में मिली थी। स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियों के मध्य भारतीयों को भारत विभाजन का स्मरण और उस पर टीस उत्पन्न होना भी स्वाभाविक है और यह भी सत्य है कि वर्तमान समय में हर भारतीय के मन में कहीं न कहीं देश विभाजन का दर्द अवश्य ही पलता रहा है।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाईयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में प्रतिवर्ष 14 अगस्त को भारत विभाजन विभीषिका दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा है। विश्वास और धार्मिक आधार पर एक हिंसक विभाजन की कहानी होने के अतिरिक्त यह इस बात की भी कहानी है कि कैसे एक जीवन शैली तथा वर्षों पुराने सह-अस्तित्व का युग अचानक और नाटकीय रूप से समाप्त हो गया।

1857 से 1947 के बीच अंग्रेजों ने भारत को सात बार तोड़ा। 1947 में हुआ भारत का विभाजन 24वां भौगोलिक और राजनीतिक विभाजन था। लार्ड माउंटबेटन 31 मई 1947 को लंदन से सत्ता के हस्तांतरण पर मंजूरी लेकर नई दिल्ली लौटे थे। 2 जून 1947 की ऐतिहासि क बैठक में विभाजन की योजना पर मोटे तौर पर सहमति बनी थी। सामान्य तौर पर इस योजना का व्यापक विरोध हुआ और विशेष रूप से कि भारत जैसे देश का विभाजन धार्मिक आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इस विभाजन के लिए वे ही नेता मानसिक रूप से तैयार थे जिन्हें इस विभाजन में अपना हित और उज्ज्वल भविष्य दिख रहा था।

अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की बैठक 9 जून, 1947 को नई दिल्ली के इम्पीरियल होटल में हुई थी। विभाजन की मांग वाला प्रस्ताव लगभग सर्वसम्मति से पारित हुआ, जिसके पक्ष में 300 और विरोध में मात्र 10 मत पड़े। लीग के कई नेता पाकिस्तान के नए अधिराज्य के दो भागों पूर्व और पश्चिम में विभाजित होने से नाखुश थे। जैसा कि समय ने साबित किया यह एक व्यावहारिक विचार नही था और कालांतर में यह सिद्ध भी हो गया। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से अलग हो गया और एक नए स्वतंत्र राज्य के रूप मे बांग्लादेश का गठन हुआ। परिस्थितियां जो भी रही हों विभाजन का जितना दर्द भारत के लोग आज महसूस करते हैं उस से कहीं ज्यादा दर्दनाक उन लोगों के लिए था।

जिन्होंने हिंसा और विस्थापन को उस समय में झेला होगा। 1947 में हमारे अपने ही राजनैतिक नेतृत्व ने विभाजन को स्वीकार कर लिया । यह देशवासियों के लिए सबसे दुखद था । विभाजन के कारणों की समीक्षा करें तो हम पाते हैं कि तात्कालिक नेतृत्व के मन में भारत बोध का अभाव व राष्ट्र और भारतीय संस्कृति के बारे में भ्रामक धारणा थी । अंग्रेज अपनी चाल में सफल हुए और उन्होंने यह स्थापित कर दिया कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा और न है बल्कि यह तो अनेक राज्यों का मिश्रण है। उस समय देश के अधिकतर नेता भी इन्हीं बातों में आकर उन्हीं की भाषा बोलने लगे ।

समय -समय पर देश हित को पीछे छोड़ मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति ने भी विभाजन की बात को और हवा देने का काम किया। यह सर्वसिद्ध तथ्य है कि भारतीय उपमहाद्वीप से ज्यादा सांस्कृतिक,राजनैतिक,सामरिक और आर्थिक आक्रमण और कहीं नहीं हुए हैं। इतिहास साक्षी है कि सभी आक्रांताओं ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया है। इतिहास में इन आक्रांताओं के द्वारा हमारे पडोसी देशों जैसे कि अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मलेशिया या बांग्लादेश पर आक्रमण किये जाने का कोई उल्लेख नहीं है।

प्राचीन काल में भारत का भौगोलिक विस्तार और सांस्कृतिक प्रभाव बहुत विस्तृत था और इसमें वर्तमान समय के ईरान, वियतनाम, कंबोड़िया, मलेशिया, फिलीपींस, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और वर्मा इत्यादि देश सम्मिलित थे। हालांकि सभी क्षेत्र के राजा अलग अलग होते थे लेकिन कहलाते थे सभी भारतीय जनपद। इतिहासकारों के अनुसार पिछले 2500 वर्षों में हमारे देश पर विदेशियों ने आक्रमण किए। इसमें विशेष रूप से फ्रैंच,डच, कुशाण, शक, हूण, यूनानी और अंग्रेज आक्रांताओं ने भारत के अनेक टुकड़े किए ।

जाति, भाषा, प्रांत और धर्म के नाम पर अखंड भारत को खंड-खंड कर दिया गया। भारत के लगभग 24 विभाजन हुए जिनसे भारत के ये पड़ोसी देश बने। विदेशी आक्रांताओं ने समय – समय पर भारत पर हमले कर हमें पराधीन करने का प्रयास किया । हम पराधीन भी हुए,लेकिन कभी भी हमने पराधीनता स्वीकार नहीं की। हम उसके खिलाफ़ संघर्ष करते रहे। इसमें कोई संदेह नहीं कि विभाजन से भारत और साथी देशों का बड़ा नुकसान हुआ है। हम सब लोगों को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि भारत अनेकों बार खंडित कैसे हुआ?

वह कौन कौन से कारण रहे या हमारी गलतियां रहीं जिनकी वजह से भारत के विभाजन की पटकथा बार-बार लिखी गई? विभाजन के दर्द और अखंड भारत के संकल्प को हमेशा अपने हृदय में बसा कर चलना होगा। यह हमारा व आने वाली पीढ़ियों का दायित्व है कि हम इस अखंड भारत के स्वप्न को पूरा करेंगे। आज हमें यह भी विचार करना चाहिए कि अखंड भारत के लिए हम क्या कर सकते हैं? हमें अपनी और समाज की कमियों को पहचान कर उनको दूर करने के लिए तत्पर रहना होगा।

अपने आप को संगठित रखना होगा। अपने सिद्दांतों को व्यवहार में उतार कर इस दिशा में प्रयास करते रहना होगा। अखंड भारत कब होगा यह कहना कठिन है लेकिन ऐसे में जब हम स्वतंत्रता के अमृत काल में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मना रहे हैं तो हमारी भूमिका व कर्त्तव्य और अधिक बढ़ जाता है कि हम आज़ादी के इस भाव को जीवंत रखते हुए अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए हमें अपने कर्त्तव्य भी तय करने होंगे।

डॉ. अवनीश कुमार

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